परिचय (Introduction)
20वीं शताब्दी के लिए कम्प्यूटर का अविष्कार जहाँ एक कदम है, वहीं इण्टरनेट का विकास सचना प्रोद्यौगिकी के लिए एक लम्बी छलांग की भाँति है। कम्प्यूटर का प्रयोग आज व्यापक क्षेत्रों में हो रहा है, जिसका श्रेय इण्टरनेट को प्राप्त है। इण्टरनेट की परिभाषा सरल शब्दों में संजालों के संजाल के रूप में किया जाता है जिसमें विश्वस्तर पर हजारों की संख्या में नेटवर्क तथा करोड़ों की संख्या में कम्प्यूटर परस्पर संयोजित हैं, तथा इनके अंदर भौगोलिक भेदभाव नहीं है। हजारों नेटवर्क से जुड़े करोड़ों प्रयोक्ता के जुड़ने का उद्देश्य सूचना, व्यापार, मनोरंजन तथा संचार है। इस अध्याय में हमने इण्टरनेट के मूलभूत सिद्धान्त पर प्रकाश डाला है।
इण्टरनेट मूलतः क्या है ? (What is InternetActually ?)
इण्टरनेट सामान्यतः नेट कहा जाने वाला, कम्पनियों, विश्वविद्यालयों आदि के कम्प्यूटरों तथा नेटवर्कों को परस्पर जोड़ने वाला एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर नेटवर्क है। इण्टरनेट शब्दावली दो शब्द इन्टर अर्थात् परस्पर तथा नेटवर्क अर्थात संजाल से मिलकर बना है। इण्टरनेट आज व्यापक रूप में लिया जाता है, इसलिए परिभाषा अलग-अलग वर्गों के लिए अलग है। कुछ लोकप्रिय परिभाषा इस प्रकार हैं
- सामाजिक दृष्टिकोण से इण्टरनेट एक ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से लाखों लोग संचार स्थापित करने के साथ ही अपने विचारों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं। ये लोग निजी स्तर पर अर्थात् एक और एक के आधार पर अथवा सार्वजनिक स्तर पर समूहों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से कम्यूनिकेट करते हैं।
- व्यवहारिक, मनोरंजन तथा व्यवसायिक दृष्टिकोण से इण्टरनेट सूचनाओं का एक विशाल संकलन है जिसे इलेक्ट्रॉनिक रूप में खोजा तथा प्राप्त किया जा सकता है। इस विशाल संकलन में सभी प्रकार के विषयों पर सुझाव, डेटा, प्रशासनिक सूचना, चित्र, संग्रहालय प्रदर्शन (museum exhibitions), विज्ञ पत्र (scholarly papers), सॉफ्टवेयर तथा व्यवसायिक गतिविधियों के एक्सेस शामिल हैं। इन संसाधनों के लिए केवल आपको यह जानकारी होनी चाहिए के किस टूल तथा सेवा का प्रयोग किया जाये।
- तकनीकी दष्टिकोण से इण्टरनेट हजारों कम्प्यूटर नेटवर्क का एक नेटवर्क है। सभी नेटवर्क एक साथ मिलकर लाखों कम्प्यूटर सिस्टम के नेटवर्क का निर्माण करते हैं। ये कम्प्यूटर तथा नेटवर्क एक ही नियमों के अनुसार डेटा का आदान-प्रदान करते हैं, यद्यपि नेटवर्क तथा कम्प्यूटर प्रणालियों के मध्य प्रोद्यौगिकी का अंतर होता है। निष्कर्षतः इण्टरनेट की परिभाषा यह है कि “इण्टरनेट संजालों का एक संजाल है जो लोगों तथा कम्प्यूटरों को विश्वस्तर पर एक साथ जोड़ता है।”
इण्टरनेट की वृद्धि (Growth of Internet)
हमने जो रोचक परियों की कहानियाँ में अपने बाल्यावस्था से अपनी दादियों से सुना था, आज इण्टरनेट ने उसे यथार्थ कर दिखाया है। इण्टरनेट ने दरियों को समेटा तथा दनिया को सिकोड़ दिया है। इन कुछ वर्षों में खासकर वर्ल्ड वाइड वेब की शुरूआत के बाद, इण्टरनेट एक अत्यन्त शक्तिशाली प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा है। जिसने व्यापार के तरीकों के साथ हमारे कम्यूनिकेशन की शैली को भी बदल दिया है। इण्टरनेट ने दुनिया का एक वैश्विक (globalized) आयाम प्रदान किया है। यह आज सूचना का विश्वव्यापी स्रोत है।
इण्टरनेट वास्तव में सभी व्यापक माध्यमों (mass media) में सर्वाधिक लोकतांत्रिक (democratic) है। बिल्कुल कम निवेश के साथ कोई भी श्ण्टरनट पर एक वेब पेज प्रकाशित कर सकता है। इस तरह से कोई भी व्यापार बहुत बड़े बाजार में सीधे-सीधे तथा तेजी से कम खर्च में प्रवेश कता है। जिसके लिए व्यापार का आकार तथा लोकेशन (location) का महत्वपूर्ण होना आवश्यक नहीं है। बहुत ही कम लागत के साथ जा पढ़ और लिख सकता है वर्ल्ड वाइड वेब को एक्सेस कर सकता है।
इण्टरनेट दिन प्रतिदिन बदि कर रहा है तथा लोग समीप आते जा रहे हैं और सीमाएँ संकुचित होती जा रही हैं।
इण्टरनेट के स्वामी (Owner of The Internet)
इण्टरनेट का न ही कोई अध्यक्ष और न ही मुख्य कार्यकारिणी पदाधिकारी (Chief Executive Officer) है। घटक नेटवर्क (constituent networks) के अध्यक्ष या मुख्य कार्यकारिणी पदाधिकारी (chief executive officer) हो सकते हैं लेकिन इण्टरनेट का पूर्ण रूप से कोई संचालक या नियंत्रक नहीं है। इण्टरनेट पर मुख्य अधिकार इण्टरनेट सोसायटी (Internet Society) का है जो एक स्वयं सेवी सदस्यता संगठन है जिसका उद्देश्य इण्टरनेट प्रौद्योगिकी के माध्यम से वैश्विक संचार के आदान-प्रदान का विकास करना है। यह आमंत्रित स्वयंसेवकों के परिषद का चयन करती है जिसको इण्टरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड (Internet Architecture Board) कहा जाता है। इण्टरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड इण्टरनेट के तकनीकी प्रबंधन तथा दिशा (direction) के लिए उत्तरदायी होता है। कम्प्यूटर तथा सॉफ्टवेयर एप्लिकेशनों के मध्य बातचीत करने के लिए कुछ मानक (standards) हैं जिसके आधार पर इण्टरनेट कार्य करता है। यह मानक विभिन्न कम्पनियों के द्वारा निर्मित कम्प्यूटर के मध्य भी संवाद करने में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होने देती है। इण्टरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड प्रायः इस तरह के मानक बनाने के लिए बैठकें करती रहती है तथा साथ पते (addresses) जैसे संसाध नों का आवंटन (allocate) करती रहती है। जब कोई मानक की आवश्यकता होती है, तब यह समस्या पर विचार करती है तथा मानक को ग्रहण करती है और इसकी घोषणा इण्टरनेट के माध्यम से करती है।
इण्टरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड Intermet Architecture Board) वैसे सूचना को भी रखती है जोकि इण्टरनेट से जुड़े कम्प्यूटरों की पहचान अनोखे ढंग से (uniquely) करती है। उदाहरणार्थ, इण्टरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर का एक-एक अनोखा 32-बिट पता होता है। किसी भी दो कम्प्यटरों का एक पता नहीं होता है। इण्टरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक कम्प्यूटर के नामकरण के लिए कछ निश्चित नियमों का पालन किया जाये।
इण्टरनेट प्रयोक्ता अपने विचार इण्टरनेट इंजिनियरिंग कार्य बल (Internet Engineering Task Force) के बैठकों (meetings) के माध्यम से व्यक्त करता है। इण्टरनेट इंजिनियरिंग कार्य बल एक अन्य स्वयंसेवी संगठन है जो इण्टरनेट के ऑपरेशनल (operational) तथा तकनीकी समस्याओं पर चर्चा करने के लिए लगातार बैठकें आयोजित करती है तथा जब कोई समस्या बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है, तब इण्टरनेट इंजिनियरिंग कार्य बल इस समस्या से सम्बन्धित आगे की जाँच हेतु एक कार्यकारी समूह का गठन करता है। कोई भी व्यक्ति आई.ई.टी.एफ. की बैठकों में शामिल होकर इस समूह का भाग बन सकता है। कार्यकारी समूह यह सिफारिश करता है कि अमुक समस्या के समाधान हेतु मानक की घोषणा की जाय या नहीं।
इण्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider)
इण्टरनेट का पूरा खर्च किसी को वहन नहीं करना पड़ता, बल्कि इण्टरनेट पर किये जाने वाले कार्य के बदले प्रत्येक प्रयोक्ता अपने हिस्से का भुगतान करता है। नेटवर्क एक साथ संयोजित होते हैं तथा कैसे परस्पर जुड़े तथा इस परस्पर संयोजन पर होने वाले खर्च की राशि कहाँ से लायें, यह निणय करते हैं। विद्यालय या विश्वविद्यालय अथवा एक कम्पनी अपने संयोजन का भुगतान क्षेत्रीय नेटवर्क को करती है तथा वह क्षेत्रीय नेटवर्क इस एक्सस के लिए राष्ट्रीय प्रदाता को भुगतान करता है।
वह कम्पनी जो इण्टरनेट एक्सेस प्रदान करती है इण्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कहलाती है। किसी अन्य कम्पनी का तरह हो इण्टरनेट सेवा प्रदाता अपने सेवाओं के लिए प्रयोक्ता से पैसा लेती है। सामान्यतः इण्टरनेट सेवा प्रदाता दो तरह की शुल्क राशि लेती है
• इण्टरनेट प्रयोग करने के लिए
• इण्टरनेट संयोजन (connection) देने के लिए।
आई. एस. पी. (ISP) के सभी ग्राहकों को इण्टरनेट प्रयोग के बदले में शुल्क राशि का भुगतान करना ही होता है। अधिकतर मामलों पी. ग्राहक पर एक निश्चित माहवार शुल्क लगाती है। इसमें ग्राहकों को समयावधि, संचार की दूरी तथा डेटा डाउनलोड या अपलोड का के लिए स्वतंत्रता दी जाती है। प्रयोग शुल्क के बदले आई. एस. पी. ग्राहक के कम्प्यूटर से गंतव्य स्थान तक तथा अन्य स्थानों से ग्राहक तक पैकेट को ले जाने और लाने पर सहमत होते हैं।
यद्यपि प्रयोग शुल्क एक निश्चित दर पर लगाया जाता है, आई. एस. पी. प्रयोक्ता के वर्गों के अनुसार इसे निर्धारित करते हैं, उदाहरणार्थ, आई परक व्यवसायिक प्रतिष्ठान से एक व्यक्ति की तुलना में अधिक शुल्क लगाते हैं, क्योंकि एक व्यक्तिगत प्रयोक्ता इण्टरनेट का प्रयोग एक कम्प्यटर पर कभी-कभी करता है, जबकि व्यवसायिक प्रतिष्ठान में इण्टरनेट का प्रयोग कई लोग करते हैं तथा वहाँ प्रतिदिन डेटा स्थानांतरण की मात्रा बडी होती है। इसके अतिरिक्त आई. एस. पी. इण्टरनेट का शुल्क इस बात पर भी तय करता है कि उस ग्राहक के पास कौन सा संयोजन है। वैसे ग्राहक जिनके पास बड़ी मात्रा में डेटा को स्थानांतरित करने के योग्य संयोजन है, को कम क्षमता के संयोजन वाले ग्राहकों की तुलना में अधिक शल्क देने होते हैं। एक अन्य प्रकार का संयोजन शुल्क भी वैसे ग्राहकों के लिए निर्धारित होता है जिनके पास उनके साइट तथा आई. एस. पी. के मध्य अलग से एक समर्पित (dedicated) संयोजन होता है। बी. एस. एन. एल. (BSNL), वी. एस एन. एल. (VSNL), रिलायन्स (Reliance), सिफी (Sify), भारती (Bharti) भारत के कुछ खास इण्टरनेट सेवा प्रदाताओं के नाम हैं।
इण्टरनेट की संरचना (Anatomy of Internet)
इण्टरनेट एक ऐसा तंत्र है जिसमें कई महत्त्वपूर्ण सुविधाओं का समायोजन है। इण्टरनेट साइट अथवा वेबसाइट इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ हैं जो एच. टी. एम. एल (HTML) नामक कम्प्यूटर भाषा में लिखे जाते हैं, जो हायपर टेक्स्ट मार्कअप भाषा (Hypertext Markup Language) का संक्षेप होता है। प्रत्येक वेब पेज का एक अनोखा पता (address) होता है जिसे संक्षेप में यू. आर. एल. (URL) या यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (Uniform Resource locator) कहते हैं। यू. आर. एल., वेब पेज नेटवर्क पर किस स्थान पर उपलब्ध है यह बताता है। वेबसाइट में एक या एक से अधिक वेब पेज होते हैं जो परस्पर जुड़े होते हैं तथा यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसे किस प्रकार डिज़ायन किया गया है। इण्टरनेट पर उपलब्ध विषय वस्तु की संरचना इस प्रकार होती है कि आपको इसका भ्रमण (navigation) करने के लिए क्रमिक विधि का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात् आपको 1,2,3,4 के क्रम में जाने की आवश्यकता नहीं बल्कि आप साइट के किसी भाग में उससे सम्बन्धित लिंक को क्लिक कर जा चित्र 1.1 : इण्टरनेट की संरचना सकते हैं। ये हायपरलिंक विधि की सहायता से परस्पर जुड़े होते हैं।
इण्टरनेट की संरचना भौतिक रूप से आपके पर्सनल कम्प्यूटर, वेब ब्राउज़र सॉफ्टवेयर, इण्टरनेट सेवा प्रदाता के द्वारा दिया गया संयोजन, सर्वर नामक कम्प्यूटर जो डिजीटल डेटा को होस्ट (host) करता है तथा राउटर (router) तथा स्वीच जैसे उपकरण को सूचना के प्रवाह को निर्देशित करते हैं पर आधारित होता है।
इण्टरनेट को क्लाइन्ट सर्वर प्रणाली भी कहा जाता है, क्योंकि इण्टरनेट मूलतः क्लाइन्ट सर्वर आर्किटेक्चर का व्यवहारिक रूपान्तरण होता है। आपका कम्प्यूटर क्लाइन्ट होता है तथा दूरस्थ कम्प्यूटर जो इलेक्ट्रॉनिक फाइलों को संग्रहीत रखता है, सर्वर कहलाता है।
आरपानेट तथा वर्ल्ड वाइड वेब का इण्टरनेट इतिहास (Arpanet and Internet History of the World Wide Web)
इण्टरनेट की परिकल्पना किस प्रकार हुई और यह कैसे अपने वर्तमान स्वरूप में पहुँचा यह एक बड़ा स्वाभाविक-सा प्रश्न है जो कि प्रत्येक इण्टरनेट उपयोगकर्ता के मस्तिष्क में उभरता है। इण्टरनेट मूलतः सैन्य गतिविधियों का परिणाम है। बात उस समय की है जब रूस व अमेरिका के मध्य शीत युद्ध जारी था। दोनों देशों ने अनेक परमाणु हथियार विकसित कर लिये थे। उस समय अमेरिका के रैण्ड कारपोरेशन, जो कि अमेरिकी सेना का प्रमुख सलाहकार संगठन था, ने एक ऐसे कम्प्यूटर संचार (नेटवर्क) की परिकल्पना की जो कि परमाणु हमले के बाद भी कार्य कर सक तथा एक कम्प्यूटर-संचार मार्ग का प्रयोग करते हुए संचार व्यवस्था स्वतः ही जारी रख सके। इससे पूर्व कम्प्यूटर को श्रेणीक्रम (Series line) में हो जोड़ा जाता था अर्थात् यदि एक कम्प्यूटर खराब हो गया तो आगे का संचार भंग हो जाता था। इसे प्वाइंट टू प्वाइंट (Point to Point) प्रकार का नेटवर्क कहा जाता था।
इण्टरनेट की विकास यात्रा को लगभग 30 साल हो गये हैं। इण्टरनेट का पितामह केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लियोनार्ड क्लानराक फा कहा जाता है। डॉ क्लीनरॉक और उनके साथियों ने 2 सितम्बर, 1969 को दो कम्प्युटरों के बीच संवाद कायम करने में सफलता ए सवाद रेफ्रिजरेटर के आकार के एक राउटर (router) के जरिए बना था जिसे इंटरफेस मैसेज प्रोसेसर कहा गया। वास्तव में दा कम्प्यूटर सम 20 अक्टबार, 1969 को बात की। अमेरिकी सरकार की उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेन्सी एआरपीए (ARPA) ऐसा नेटवर्क का धन दे रही थी जिससे चुने हुए केन्द्रों के शोधकर्ताओं को एक-दूसरे के कम्प्यटर का इस्तेमाल करने की क्षमता मिल सकार क बना उसे अरपानेट (Arpanet) कहा जाता था।