जंतुआलयों में अब नहीं रहेंगे मोर, लवबड्र्स व नेवले
राज्य के चिडिय़ाघरों में अब मोर, लवबड्र्स, नेवले तथा सामान्य पाए जाने वाले सांपों को जगह नहीं मिलेगी। उप मुख्य वन्यजीव प्रतिपालन विभाग के सूत्रों ने बताया कि केन्द्र चिडिय़ाघर प्राधिकरण (नई दिल्ली) ने हाल में एक आदेश जारी कर राज्य के जंतुआलय में बंद सामान्य वन्यजीव क्रमश: मोर, लवबड्र्स, नेवला तथा सांपों को इनके प्राकृतिक स्थानों पर छोड़े जाने के निर्देश दिए हैं।
आदेश में बताया गया है कि उपर्यु०त वन्यजीवों को प्राकृतिक स्थानों पर छोड़ते समय इनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि इन्हें ऐसे क्षेत्रों में छोड़ा जाए, जहां ये जीवित रह सकेंगे, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई जीव बीमारी से ग्रसित तो नहीं है। सूत्रों ने बताया कि वन्यजीव विभाग उदयपुर के जंतुआलय में यदि उपरो०त जीव होंगे तो उन्हें प्राकृतिक स्थानों पर छोड़ेगा। बताया गया कि इस आदेश के साथ ही इन जीवों को घरों में कैद करने वाले लोगों के खिलाफ भी कानूनन कार्रवाई करने के प्रावधान हैं।
ईसवाल में मिले उत्तर मौर्ययुगीन पुरावशेष
यहां से करीब 20 किलोमीटर ईसवाल गांव के पास इन दिनों चली रही पुरातात्विक खुदाई में जो अवशेष सामने आए हैं वे उत्तर मौर्यकाल या लगभग 200 ईसा पूर्व के हैं। ईसवाल में 13 वीं सदी में बनेे विष्णु पंचायतन मंदिर के पास एक टीले पर हो रही खुदाई में प्रारंभिक स्तरों पर मिट्टïी की वस्तुओं के साथ ही एक लौह दरांती मिली है जो लगभग आधा फीट लंबी है। लोह का ही एक घुंघरु भी प्राप्त हुआ है।
ये अवशेष कृषि और सांस्कृतिक जीवन में संगीत या नृत्य की मान्यता को दर्शातेे हैं। यहां गले हुए लौह और लौह चूर्ण के साथ ही कांच की अनेक रंगों वाली चूडिय़ों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। ऐसे कर वलयों से तत्कालीन जन जीवन में शृंगार की परंपरा को बताते हैं। चूडिय़ों के लिए कांच का विभिन्न रंगों में मिलना एक विचित्र संयोग है। मेवाड़ में कई स्थानों पर चूडिय़ों के अवशेष मिले हैं किंतूु ईसवाल में इस प्रकार के कर वलयों का मिलना यहां प्राचीन काल में कांच प्रगलन केंद्र का होना और कांच के मानवोपयोगी सामान बनाने के उद्योग का होना बताता है।
मेवाड़ के इस क्षेत्र में सायरा के निकट पदराड़ा में लोह सामग्री का निर्माण होता था और ईसवाल के आसपास सेंड की मौजुदगी हेै जिसे एक विशेष तापक्रम पर गर्म करने से कांच प्राप्त किया जाता था। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि मौर्य सम्राट अशोक के पौत्र संप्रति का इस क्षेत्र में अधिकार था और उसने जैन मत स्वीकारने के बाद यहां पर मंदिरों का निर्माण करवाया था। कुंभलगढ़ के निर्माण का श्रेय भी उसे ही प्रथमत: दिया जाता है।
यूं उत्तर मौर्य काल के केवल महाभाष्य को छोडक़र अन्य किसी ग्रंथ में इस क्षेत्र का वर्णन नहीं मिलता किंतु अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, पाणिनी की अष्टïाध्यायी पर टीका और वलभी में संगृहीत ग्रंथों में जिन मानव जीवनोपयोगी वस्तुओं का विवरण प्राप्त होता है, वे इस क्षेेत्र में प्राप्त होती रही है। अशोकावदान व प्लीनी के विवरण में जो विवरण है, उसे अब तक इस क्षेत्र के साथ जोडक़र देखने के प्रयास नहीं हुआ है।
साहित्य संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज की ओर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्वीकृति से यहां खुदाई की जा रही है। साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. ललित पांडे ने बताया कि अभी पांच खाइयां खोदी गई है और प्रारंभिक स्तरों पर आशाजनक परिणाम प्राप्त हु्रए हैं। यह अनुमान किया जा रहा है कि यहां से भी प्रागैतिहासिक अवशेष प्राप्त होंगे तथा राजस्थान के इतिहास को इसी आधार पर नए सिरे से देखा और लिखा जाएगा।
वर्षा की कमीं से जल संकट की आशंका
क्षेत्र में विगत दो वर्षों से वर्षा की कमीं के कारण अगले गर्मी के महिनों में पानी की किल्लत होने की आशंका है। क्षेत्र कुशलगढ़ पंचायत समिति के 19 तालाबों में से मात्र दो तालाबों में ही अब तक पर्याप्त पानी आया है। कुशलगढ़ पंचायत समिति क्षेत्र में 1999-99 में 62 इंच वर्षा दर्ज की गई थी, जबकि सन 2000 में मात्र 12 इंच वर्षा दर्ज की गई थी व इस वर्ष 2001 में 18 इंच वर्षा दर्ज की गई है।
कुशलगढ़ क्षेत्र में ग्रामीणों का रोजगार मात्र कृषि व पशुधन है। ऐसी स्थिति में वर्षा पर्याप्त मात्रा में नहीं होने कृषि व पशु धन की रक्षा के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कुशलगढ़ पंचायत समिति के सिंचाई विभाग के अधीन यह तालाब है इन तालाबों में दो बड़े जलाशय है, जिनमें नगर के समीप तीन किमी दूर कलिंजरा तालाब के पानी के भराव क्षमता 291.15 एमसीएफटी है, जबकि वर्तमान में इस कलिंजरा तालाब में पानी की क्षमता 172.17 एमसीएफटी है।
पिछले वर्ष कुशलगढ़ नगर में इस तालाब से लिफटिंग कर आठ एमसीएफटी पानी वितरित गया था। वहीं दूसरा बड़ा जलाशय नगर से सात किमी दूर सुनारिया तालाब है, जिसकी भराव क्षमता 133.42 एमसीएफटी है। वर्तमान में 108.06 है। इसके अलावा इन तालाबों में दो तालाब जो क्षमता के अनुरूप हैं रसौडि़ आठ एमसीएफटी है वहीं दूसरा तालाब सारनपाटला का नाका, जिसकी भराव क्षमता 19 है, वह पूरा भरा हुआ है, जबकि रामगढ़ जलाशय 8.12 है वहां मिट्टी तक पानी है बाकी मिट्टी भरी हुई है।
इसके अलावा पापदा 47.60 एमसीएफटी वर्तमान में 19.52, घोड़ादरा 44.60 एमसीएफटी, वर्तमान में 19.42 है। नागदा 42.29 एमसीएफटी वर्तमान में 20.63 है। चरकनी 34.20 एमसीएफटी वर्तमान में 13.99 है। सरवन 21.24 एमसीएफटी वर्तमान में 8.23 है। करमदिया 20 एमसीएफटी वर्तमान में 5 एमसीएफटी है। झिकली है 16 वर्तमान में 8.85 और आखेपुर 14 एमसीएफटी वर्तमान में 9 है, खानापाड़ा 15 है वर्तमान में 3 एमसीएफटी पानी है। बिजोरी में 12.3 वर्तमान में 19 है। खेरियापाड़ा 8.85 वर्तमान में 4.6 है। झाकरिया 8.1 है वर्तमान में 6.2 है। बड़वास 7.20 वर्तमान में 5.9 है। बड़ी सरवा एमसीएफटी 6.40 है लेकिन वर्तमान में 4.2 है।