ज्योतिष के क्षेत्र में भारत का प्रयास

ज्योतिष और भारत

ज्योतिष के क्षेत्र में भारत संसार के समस्त देशों से सदा है । आज, यद्यपि अन्य क्षेत्रों में भारत की गणना पिछड़े देशों में होती है, किन्तु ज्योतिष के मामले में सैंकड़ों वर्षों से संसार के समस्त देशों का नेतृत्व करता आ रहा है | यह नगण्य सत्य है कि संसार के समस्त ज्योतिष ज्ञान भारत के ज्योतिष ज्ञान के सम्मुख कोई नहीं रखता | इसके साथ ही साथ यह हमारा दुर्भाग्य हमारे देश में इस विद्या की धीरे २ अवनति हो रही है। इस अवनति के दो मूल कारण हैं। पहला कारण तो यह है की ऐसा कोई विद्यालय नहीं जहाँ इसकी दीक्षा समुचित व्यवस्था हो।

ज्योतिषशस्त्र में भारतीयों का योगदान

किसी भी विद्या का उत्थान जब तक सम्भव न हो तब तक शासन उसके प्रसार ओर खोज का पूर्णसाधन उपलब्ध रहता है। देश के पाठ्यक्रम में इसका कोई महत्व नहीं अतः कोई भी व्यक्ति इसके ज्ञान प्राप्ति के साधनों से वंचित रह जाता है। इसलिए उनका ज्ञान अधूरा रह जाता है और श्रंखलाबद्ध न होने के कारण उनके ज्ञान का कोई महत्व ही नहीं रहता | शासन के इस कम में जो सदियों से इस विद्या विशेष के साथ चली आ रही, उनके पतन का मुख्य कारण हो गई है ।

दूसरा कारण है जनता की इस विद्या के प्रति उपेक्षा। जन-समुदाय इसको केवल जन्मपत्री बनाने वाले तथा शनिवार के दिन तेल माँगने वाले भण्डारी की विद्या का व्यवहार करता है। यह सच भी है कि इन दोनों श्रेणी के लोगों ने अपने इस क्षुद्रज्ञान द्वारा जनता के अहित भी अनेकों किये है। इस पर कोई विश्वास रह नहीं गया है। वह केवल इसे प्राचीन विद्या प्राचीन विद्या समझकर इसका आदर तो, करते हैं और सर्वदा इस खोज में रहते हैं कि इस विद्या के समुचित जानकार से उनका साक्षात्कार हो सके। भूत और भविष्य की गणना करके फलादेश को कहना अपना विशेष महत्व रखता है । निराक्षर भट्टाचार्य जिनके हाथों इस विद्या का प्रसार है और जो इसे अपनी जीविका का साधन बनाये हैं यह जनता के संम्मुख ऐसा उदाहरण प्रस्तुत फरने में सर्वदा असमर्थ ही रहते हैं कि जिनके द्वारा वह जन-साधारण की श्रद्धा और इस विद्या फे प्रति उनका आदर प्राप्त कर सकें।

ज्योतिष में ऋषि- मुनियों का योगदान

भारत आज प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। अतः यह हमारा कर्तव्य हो गया है कि हम सब मिलकर इस क्षेत्र में भी उचित सुधार करें। इस क्षेत्र का सुधार जब ही हो सकता है जब कि इस विद्या का प्रसार उचित रीति से हो । अतः प्रसार के उत्तरदायित्व को लेते ही हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम इस विद्या कोश्रंखलाबद्ध करके, उचित तर्कों के साथ ही जनता के सम्मुख प्रस्तुत करें।

ज्योतिष बहुत गहन विषय है । इसका क्षेत्र बहुत विस्तीर्ण है और यह संभव नहीं कि सागर को गागर में भरा जा सके। अतः इसके विभिन्न क्षेत्रों को पृथक पृथक कर के ही उनका उत्थान किया जा सकता है । प्रस्तुत लेख में हमने रेखा विज्ञान का विश्लेषण किया है ।

मनुष्य के शरीर पर तीन अंग प्रधान हैं जहाँ रेखाओं का बाहुल्य होता है और इनकी गणना सनातम काल से होती चली आ रही है। मनुष्य का हाथ, पैर, मस्तिष्क इस श्रेणी में आते हैं। यह तीनों अंग मानव शरीर में अपना विशेष महत्व रखते है तथा इनको शरीर का प्रवर्तक अंग भी कहा जाता है। यह कठोर सत्य है कि परिवर्तन जीवन के हर क्षेत्र में अवश्यम्भावी हैं। अतः परिवर्तनों पर मनुष्य के मस्तिष्क, हाथ और पैर का अवश्य प्रभाव पढ़ता है। प्राचीन अन्वेषकों ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि अंगो की रेखाएँ भी मनुष्य के जीवन के परिवर्तनों के साथ ही घटती बढती रहती हैं। इसी सिद्धान्त को लेकर हमारे ज्योतिषाचार्यों ने इस विद्या की आधारशीला रखी है और वही आज तक चली आ रही है।

ज्योतिष और मानव शरीर 

जिस प्रकार औषधि विज्ञान के प्रवर्तकों ने विविध प्रकार की औषधियों को स्वयं भक्षण करके उसके दोषों और गुणों का वर्णन किया है उसी तरह इस विज्ञान के अन्वेषकों ने भी कर्म द्वारा रेखाओं की रद्दी बदल पर पूर्ण खोज की है। सबका मत यही है कि मनुष्य के कर्मों तथा जीवन के परिवर्तनों का प्रभाव रेखाओं पर अवश्य पड़ता है। इस विद्या के जानकरों ने अनेकों बार रेखाओं को देखकर ही मनुष्य के भूत और भविष्य का वह हाल बता दिया है जिसको जान कर संसार आश्चर्यचकित रह गया।

जब से मांनव समाज का जन्म हुआ हे तब से ही इस विद्या का भी जन्म-हुआ । ऐतिहासिक तथ्यों द्वारा यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित कर दिया गया है कि भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है। भारत की अन्य ज्ञान विज्ञान की विद्याओं के साथ ही इस विद्या का भी विकास बढ़ता रहा। भारतीय महर्षियों और सन्त- जनों ने संसार को त्याग कर वन सें अपना जीवन व्यतीत करते थे इस ओर अधिक अन्वेषण किए। उन्होंने सौर मण्डल के ग्रहों की गति और मनुष्य के हाथ की रेखाओं, ललाट की रेखाओं आदि का मनन किया। उनके अनुभवों ओर परीक्षणों से जो सार एकत्रित हुआ, आज वही ज्योतिष विद्या के रूप सें विद्यमान है।

ज्योतिष विद्या का विश्व के देशों में प्रसार

सूर्य, पृथ्वी, चन्द्र आदि ग्रह चलायमान हैं। इस बात को हमारे पूर्वज अनेकों वर्ष पहले ही प्रमाणित कर चुके हैं। यह भी प्रमाण तथ्ययुक्त है की प्रकृति का कण कण चलायमान है। प्रगति के अनुसार ही हर वस्तु का फलादेश होताहै, इस मूल तत्व पर पर रखी हुईं ज्योतिष शस्त्र की नीव आज भी अडिग है। ज्योतिष का अपना विशेष महत्व है और उसके अनुसार ही रेखाओं का ज्ञान भी अपना विशेष क्षेत्र बनाये हुए है ।

प्रस्तुत लेख में रेखा विज्ञान के हर पहलू पर पूर्ण प्रकाश डालने की चेष्टा की गयी है। कहीं कहीं अंग्रेजी में जो अंश लिखे गए हैं वह विदेशी मतानुकूल है । विदेशी सभ्यता के प्रेमी भारतीय शात्रों से अधिक अंधिकृत पाश्चात्य मतों को मानते हैं। सच तो यह है कि पाश्चात्य देशों में इस विद्या के क्षेत्र में अपना तो कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी उनके पास है वह भारतीय ज्योतिष विद्या का ही झूठा है । यह तो पहले ही हम बता चुके हैं कि इस विद्या को शालाबद्ध रूप में लाने का सौभाग्य भारत को ही प्राप्त है। इसका जन्म ही यहाँ हुआ और इसी महादेश में जन्म लेकर यह अन्य विदेशों में फैली।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *